होमी जहांगीर, परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक की अनसुनी बातें,

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मनुष्य की चाहत में अपार क्षमता होती है। संकल्प की शक्ति पर्वतों को भी हिला सकती है।

आदमी ने पक्षियों की तरह उड़ना चाहा तो वह हवाई-जहाज में बैठकर गगनविहार करने लगा। आज हम आपको भारत के महान परमाणु वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा के बारे में बताएंगे जिन्होंने विज्ञान की दुनिया में भारत का परचम लहराने का कार्य किया। यही कारण है कि डॉ. होमी जहांगीर भाभा जी को परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का जनक भी कहा जाता है। आइये जानते हैं उनके बारे में।

वैज्ञानिक बनने की चाह

डॉ.होमी जहांगीर भाभा जी का जन्म महाराष्ट्र के मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता एक जाने- माने वकील थे। उनके घर में पढ़ाई को बहुत महत्त्व दिया जाता था। इसलिए बचपन से ही उनके लिए घर में पुस्तकालय की व्यवस्था कर दी गई थी। होमी भाभा बचपन से ही विज्ञान तथा अन्य विषयों से संबन्धित पुस्तकों को पढ़ने में रूचि रखते थे। शुरूआत से ही उनकी अत्यधिक रूचि भौतिक विज्ञानं और गणित में थी।

इंग्लैंड में जाकर पढ़ाई

शुरुआती पढ़ाई के बाद डॉ.होमी जहांगीर भाभा इंग्लैंड गए जहाँ उन्होंने कैंब्रिज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से ही उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। वो हमेशा से ही पढ़ाई में तेज थे इसलिए उन्हें छात्रवृत्ति मिलती रहती थी। उन्हें प्रसिद्ध वैज्ञानिक रदरफोर्ड, डेराक, तथा नील्सबेग के साथ काम करने का अवसर मिला। फिजिक्स के प्रति उनका लगाव था इसलिए उन्होंने फिजिक्स से खुद को जोड़े रखा।

भारत में विज्ञान के लिए काम

डॉ. जहांगीर भाभा दूसरे विश्व युद्ध के समय भारत वापस लौट आए। इस बीच उन्होंने जितना ज्ञान अर्जित किया था जिसका वो भारत में उपयोग करना चाहते थे। वापस आने के बाद वो बैंगलूर के इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस से जुड़ गए और कुछ समय बाद इनको वहाँ के रीडर पद पर नियुक्त कर दिया गया। यहीं से उनके जीवन का नया सफ़र शुरू हो गया। कुछ समय के पश्चात साल 1941 में मात्र 31 वर्ष में ही इनको रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुन लिया गया। जहांगीर भाभा जी इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस के पूर्व अध्यक्ष और नोबेल प्राइज विजेता सी. वी. रमन जी से बहुत प्रभावित थे।

रिसर्च की डाली नींव

डॉ. होमी जहांगीर भाभा जी ने मुम्बई में टाटा की मदद से “टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च” की नींव डाली और साल 1945 में खुद ही इसके निदेशक बन गए। वर्ष 1948 में डॉ. जहांगीर भाभा ने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की शुरूआत की और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके साथ-साथ कई महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भी भाग लिया। 1955 में जेनेवा में संयुक्त राज्य संघ द्वारा आयोजित शांतिपूर्ण कार्यों के लिए ‘परमाणु ऊर्जा का उपयोग’ के पहले सम्मेलन में डॉ. जहांगीर भाभा को सभापति बनाया गया।

सादगी से भरे हुए भाभा

डॉ. होमी भाभा 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे तब वह भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे। उनकी सादगी का आलम यह है कि वो अपना ब्रीफकेस भी खुद ही उठाया करते थे। उन्होंने अपने ज्ञान और अपनी मेहनत से जिम्मेदारी के साथ TIFR की स्थाई इमारत का निर्माण करवाने में अहम भूमिका निभाई।

कई सम्मान से सम्मानित

डॉ. होमी जहांगीर भाभा केवल वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि एक महान इंजीनियर, निर्माता और उद्यानकर्मी भी थे। डॉ. भाभा को पाँच बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था लेकिन उन्हें ना जाने क्यों नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया। इसके अतिरिक्त श्री होमी भाभा को 1943 में एडम्स अवार्ड मिला था।1948 में हापकिन्स पुरुस्कार और भारत सरकार की ओर से देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।

भारत सरकार ने महान वैज्ञानिक डॉ. होमी भाभा के योगदान को देखते हुए भारतीय परमाणु रिसर्च सेंटर का नाम भाभा परमाणु रिसर्च संस्थान रखा गया है। इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है। आज उनके योगदन अतुलनीय हैं।

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