“ज़िंदगी कि असली उड़ान बाकी है,
जिंदगी के कई इम्तेहान अभी बाकी है,
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीन हमने,
अभी तो सारा आसमान बाकी है”।
इस बात को प्रमाणित करने का कार्य किया है MRF टायर के संस्थापक स्व. श्री के. एम. मैमन मापिल्लई जी ने। कभी सड़कों पर बच्चों के लिए गुब्बारे बेचने वाले स्व. श्री के. एम. मैमन मापिल्लई जी ने आज भारत की सबसे बड़ी टायर बनाने वाली कंपनी की स्थापना की है। आज उनकी कंपनी सुखोई विमान के लिए भी टायर बनाती है जो किसी बड़े सम्मान से कम नहीं है। आइए जानते हैं उनके इस सफलता के बारे में।
बचपन संघर्ष में बीता
28 नवंबर 1922 को केरल के एक छोटे से गांव में जन्में स्व. श्री के. एम. मैमन मापिल्लई का बचपन काफी संघर्षों में बीता। उनके पिता एक सफल व्यापारी थे, लेकिन एक घटना के कारण उनका पूरा व्यापार बंद हो गया था। जिसके कारणवश उनके परिवार को गरीबी में गुजर-बसर करना पड़ा। श्री के. एम. मैमन मापिल्लई जी ने किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी की। वो कई बार कॉलेज के फर्श पर ही सो जाया करते थे क्योंकि उनके परिवार के पास सिर ढंकने की जगह भी नहीं थी।
गुब्बारा बेचा मैमन ने
शादी के बाद श्री के. एम. मैमन मापिल्लई जी अपनी पत्नी के साथ एक झोपड़ी में रहने लगे। उन्होंने यहीं से एक गुब्बारे की फैक्ट्री की शुरूआत की। और वो सड़कों पर बच्चों के लिए गुब्बारे बेचने लगे। सड़कों पर बच्चों के लिए गुब्बारा बेचने के साथ उन्होंने अपनी फैक्ट्री का नामकरण किया। उन्होंने मद्रास रबर फैक्ट्री जिसे MRF कहा जाता है इसकी शुरूआत की।
MRF को लोग जानने लगे
धीरे-धीरे MRF से रबड़ से बने उत्पादों की बिक्री होने लगी। फिर उन्होने अपना पहला ऑफिस थाम्बू चीटे स्ट्रीट मद्रास में खोला।करीब 2-3 साल बाद श्री मैमन जी ने अपने चचरे भाई की मदद से ट्रीड रबर बनाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते उनके द्वारा बनाई जा रही रबर लोगों को बहुत ही पसंद आने लगी।
टायर से मिली सफलता
देखते ही देखते उनकी कंपनी MRF यानी मद्रास रबर फैक्ट्री, रबर बाजार का किंग बन गयी। 1956 तक MRF के पास भारत में ट्रीड रबर की 50% की हिस्सेदारी थी। सन 1961 में MRF ने मैन्सफील्ड टायर एंड रबर कंपनी के साथ टाई-उप करके टायर बनाना शुरू किया। इसके बाद 1964 में ही व्यापार बढ़ाने के लिए MRF ने बैरुत में अपना पहला ओवरसीज ऑफिस खोला। इसी साल में इसका मसल्समैन वाला Logo तैयार हुआ। कुछ समय बाद MRF ने टायर का एक्सपोर्ट अमेरिका को शुरू किया। जिसके बाद MRF अमेरिका को एक्सपोर्ट करने वाली पहली कंपनी बन गई।
MRF टायर की है खास पहचान
श्री के. एम. मैमन मापिल्लई जी ने अपनी जिंदगी में MRF टायर को नई पहचान दिलाई थी। साल 2003 में 80 साल की उम्र में मैमन जी के निधन के बाद आज भी उनकी कंपनी मार्केट पर अपनी धाक जमाए हुए है। यही नहीं उनकी यह कंपनी आज भारत के लड़ाकू विमान सुखोई के लिए भी टायर बनाती है। ऐसा करने वाली MRF पहली कंपनी है। उनकी कंपनी आज ट्यूब, बेल्ट, ट्रेड, हवाईजहाज तक के टायर बनाती है। मैपिल्लई जी के निधन के बाद उनके बेटों ने बिजनेस की कमान संभाली और कंपनी लगातार विकास कर रही है।
आज स्व. श्री के. एम. मैमन मापिल्लई जी इस दुनिया में नही हैं पर उनको हमेशा याद रखा जाएगा। आज वह लोगों के लिए प्रेरणा हैं।