अपनी कार्यकुशलता के बल पर देश-विदेश में परचम लहराने वाले या फिर समाज के उत्थान के लिए उत्कृष्ट काम करने वाले कुछ शख्सियतों को हर वर्ष पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है । यह पुरस्कार, विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, समाज सेवा, लोक-कार्य, विज्ञान और इंजीनियरिंग, व्यापार और उद्योग, चिकित्सा, साहित्य और शिक्षा, खेल-कूद, सिविल सेवा इत्यादि क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने वाले लोगों को प्रदान किए जाते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही इंसान के बारे में बताएंगे जिन्हें इस साल ‘ग्रासरूट्स इनोवेशन’ की श्रेणी में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। आइये जानते है 14 भाषाएँ जानने वाले बिना डिग्री के विद्वान की अद्भुत कहानी।
अली मणिकफन का परिचय ।

अली मणिकफन लक्षद्वीप के रहनेवाले वाले है। उन्होंने बस सातवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की थी। लेकिन, इस साल उन्हें ‘ग्रासरूट्स इनोवेशन’ की श्रेणी में पद्म श्री से सम्मानित किया गया है। मणिकफन 14 भाषाएं बोल सकते हैं ।
बचपन में ही समुंद्री दुनिया से परिचित थे।
मणिकफन के पिता कोर्ट में एक क्लर्क और दादा एक मछुआरे थे। काफी छोटी उम्र से ही, वह समुद्र और मछलियों की दुनिया से परिचित हो गये थे। वह अक्सर अपने दादा के साथ उनके काम पर जाते थे। वहीं उन्होंने मछली पकड़ने के बारे में सीखा। वह अपनी शिक्षा के लिए केरल के कन्नूर चले गए। यहाँ कुछ दिन शिक्षा लेने के बाद, वह वापस आ गए। उन्हें स्कूली शिक्षा से कुछ समझ नही आता था।
खगोल विद्या का ज्ञान लिया ।
अपने दादा की मदद करने के साथ, वह लाइटहाउस और मौसम विभाग में भी निःशुल्क काम करते थे। यहाँ उन्होंने मौसम का आकलन करने के लिए, हाइड्रोजन के गुब्बारों को उड़ाना सीखा। उन्होंने खगोल विद्या सीखी। इस दौरान, उन्होंने कई नौकरियां भी बदली। एक शिक्षक से क्लर्क तक और आखिरकार 1960 में, रामेश्वरम में CMFRI में वह एक लैब बॉय के रूप में नियुक्त हुए।
400 से अधिक मछलियों का ज्ञान ।

CMFRI में, उन्होंने मछली पकड़ने के बारे में बहुत जानकारी हासिल की। इस केंद्र के कई अधिकारी यह देखकर बहुत प्रभावित हुए कि वह 400 प्रकार की विभिन्न मछलियों को, कितनी आसानी से पहचान पा रहे थे। अली मणिकफन के दादाजी ने उन्हें सिखाया था कि रंग, पंख और कांटों के आधार पर मछलियों की पहचान कैसे करें।
विभाग ने उनके नाम पर एक मछली का नाम भी रखा । अबुडेफडफ मणिकफनी मछली का नाम पड़ा ।
सेवानिवृत के बाद अनेकों अविष्कार किए ।
अपने सेवानिवृत होने के बाद वह तमिलनाडु के वेडलई चले गए। वहां उन्होंने एक गैरेज में काम करना शुरू किया । वहां उनके पहले आविष्कार की शुरुआत हुई। उन्होंने 1982 में, बैटरी से चलने वाली एक रोलर साइकिल बनाई और अपने बेटे के साथ दिल्ली की यात्रा की। उन्होंने टिकाऊ कृषि के क्षेत्र में भी काम किया, तथा 15 एकड़ की बंजर पड़ी भूमि को, एक छोटे से जंगल में बदल दिया।
औपचारिक शिक्षा के खिलाफ मणिकफन ।
मणिकफन के चार बच्चे हैं। जिन्होंने अपने पिता की ही तरह, कभी औपचारिक शिक्षा नहीं ली।
उनका बेटा नौसेना में है और उनकी सभी बेटियां शिक्षक हैं।
मणिकफन को इस साल ‘ग्रासरूट्स इनोवेशन’ की श्रेणी में पद्म श्री से सम्मानित किया गया।